♂️ आचार्य प्रशांत से मिलना चाहते हैं?<br />लाइव सत्रों का हिस्सा बनें: https://acharyaprashant.org/hi/enquir...<br /><br /> आचार्य प्रशांत की पुस्तकें पढ़ना चाहते हैं?<br />फ्री डिलीवरी पाएँ: https://acharyaprashant.org/hi/books?...<br /><br />➖➖➖➖➖➖<br /><br />#acharyaprashant #kabir #kabirbhajan <br /><br />वीडियो जानकारी: 30.12.23, संत सरिता, ग्रेटर नॉएडा <br /><br />प्रसंग: <br />~ भक्ति का वास्तविक अर्थ क्या है?<br />~ भक्ति कौन करता है?<br />~ भक्त है कौन?<br />~ एक सच्चा भक्त कैसे बनें?<br />~ भक्ति अधूरी कब रह जाती है?<br /><br /><br />कबीर भजन - अब से खबरदार रहो भाई <br /><br />अब से खबरदार रहो भाई <br />अब से खबरदार रहो भाई । <br /><br />गुरु दीन्हा माल खज़ाना, राखो जुगत लगाई । <br />पाव रती घटने नहिं पावै, दिन दिन होत सवाई ।। <br /><br />क्षमा शील की माला पहनो, ज्ञान वस्त्र लगाई । <br />दया की टोपी सिर पर दे के, और अधिक बन आई ।। <br /><br />वस्तु पाई गाफ़िल मत रहना, हर दिन करो कमाई । <br />घट के भीतर चोर लगत हैं, बैठे घात लगाई ।। <br /><br />बाहर ज्ञान रहे सिपाही, भीतर भक्ति अधिकाई । <br />सुरति ज्योति हर दम सुलगे, कस कर तेल चढ़ाई ।। <br /><br />~ कबीर साहब <br /><br />शब्दार्थ: जुगत- युक्ति; गाफ़िल- अचेतन; सुरति- ध्यान<br /><br /><br />ये त्वेतदभ्यसूयन्तो नानुतिष्ठन्ति मे मतम् । <br />सर्वज्ञानविमूढांस्तान्विद्धि नष्टानचेतसः ॥ <br /><br />अहंकार में अंधकार में, अज्ञान में मतिभ्रष्ट हैं। <br />कल उन्हें क्या कष्ट हो, वो आज ही जब नष्ट हैं। <br />(आचार्य प्रशांत द्वारा काव्यात्मक अर्थ) <br />~ श्रीमद्भगवद्गीता, 3.32<br /><br /><br />कंकड़ चुन चुन महल बनाया, लोग कहें घर मेरा । <br />ना घर तेरा, ना घर मेरा, चिड़िया रैन बसेरा ।।<br />~ संत कबीर<br /><br /><br />धूमेनाव्रियते वह्निर्यथादर्शी मलेन च। <br />यथोल्बेनावृतो गर्भस्तथा तेनेदमावृतम्।। <br /><br />आग दहके पर धुएँ से प्रकाश ढक जाता है <br />काम भरा जब आँख में सच नज़र नहीं आता है <br />(आचार्य प्रशांत द्वारा काव्यात्मक अर्थ) <br />~ श्रीमद्भगवद्गीता, 3.38<br /><br /><br />नाहं देहो न मे देहो <br />(मैं शरीर नहीं हूँ, न ही शरीर मेरा है।) <br />~ अष्टावक्र गीता (अध्याय 11, श्लोक 6 से अंश)<br /><br /><br />आई गवनवा की सारी, <br />उमिरी अब ही मोरी बारी । <br /><br />साज समाज, पिया लै आये, <br />और कहरिया चारी। <br /><br />बम्हना बेदरदी, अँचरा पकरिकै, <br />जोरत गठिया हमारी । <br /><br />सखी सब पारत गारी। <br />आई गवनवा की सारी... <br />~ संत कबीर<br /><br /><br />संगीत: मिलिंद दाते<br />~~~~~